समाज का अल्टीमेटम एक महीने में कार्रवाई नहीं हुआ तो क्षेत्र में होगा शांति तरीके से अनशन ,प्रधानमंत्री भारत सरकार, महामहिम राष्ट्रपति नई दिल्ली, जनजाति कार्य मंत्री जनजातीय कार्यालय नई दिल्ली के नाम सौंपा गया ज्ञापन।

बीजापुर >> एक्सप्रेस। छत्तीसगढ़ प्रदेश के आदिवासी पारंपरिक तौर तरीके से रहने वाली तेलंगा वा तेलगा भाषी अपनी आंखों और पूर्व की तरह आदिवासी की मांगों को लेकर समय-समय पर सरकारों को ज्ञापन इन पर लगातार प्रति निधि मंडलों के द्वारा जांच प्रतिवेदन जारी किया गया पर अब तक उनकी त्रुटि आत्माक जाति के सुधार नहीं होने से पहुंचे छग के समिति जंतर मंतर नई दिल्ली और बैठा धारने में क्या है इनकी मांगे इस संबंध में समाज के जिला अध्यक्ष आदि नारायण पूजारी में बताया कि भारत के मध्य दक्षिणपूर्व में छग के बस्तर संभाग में भैरमगढ, उसूर, भोपालपट्नम, बीजापूर तहसील, जिला बीजापुर में झाड्या / झाड़िया / झाड़ी जनजाति Aboriginal Minor Forest Tribes को जनजाति का दर्जा स्वाधीनता प्राप्ती के पूर्व था या प्राप्त दस्तावेजों से ज्ञात है भारत आजाद होने के बाद 05 अप्रैल 1949 एवं 08 दिसम्बर 1950 से 1956 तक मध्य प्रांत और बरार सरकार के आदेशों मे इस जनजाति का नाम आदिवासी सूची शामिल था।
भोपाल राजधानी मध्यप्रदेश बनने के बाद से एवं 2000 से छग निर्माण के बाद 1950 की भारतीय सविंधान सूची 342 में नाम कैसे गायब हुआ यह आज तक रहस्य बना हुआ है। शासन की कई समितियों और आयोग स्थापित हुऐ परन्तु आज तक हमे आजादी नही मिली , जबकि सभी लोग आजाद है हमारी जनजाति का आजादी के बाद 73 वर्षों के बाद भी मौलिक अध्ययन नही होने के कारण प्रगति के सभी द्वार बंद है एक भी व्यक्ति बड़े शहरों में निवास नही करता तथा जंग लवन ग्रामों में रहते है आज भी शिक्षा का अभाव है। राष्ट्र के मुख्य विचारधारा में हम आज सन् 2023 तक जिक्र नही हमारी जनजाति का कोई भी व्यक्ति कर्मचारी आज भी केन्द्र सरकार में नहीं हमारे प्रगति से सब दरवाजे बंद है। प्रशासनिक विविध स्तरों पर स्थापित समितियों में सन् 1950 से हमारी जनजाति पर नामक मूलनिवासी वन्य जनजाति केन्द्र / राज्यशासन के संवैधानिक निष्कर्ष / मापदण्ड होने पर भी अनुसूचित जनजाति सूची 342 शेड्यूल में नही अपितु अध्ययन करने हेतु शासन विशेषज्ञ समिति गठित करें।
सन् 1874 में इस रियासती इलाके को पूर्णतः वर्जित क्षेत्र (Restricted area/Notified area) माना गया है। गांव के निवासियों को झाड्या / झाडिया / झाड़ी जनजाति Aboriginal Minor Forest Tribes ऋतुनुसार शिकार करना सुंभ (नुल्का) रस्सी तैयार करना, मछली पकड़ना, तेंदूपत्त एवं वनोपज जमा करना घुम्मकड़ खेती (जाड़ल-माड़ल) (Shifting Cultivation) आदि व्यवसाय करते है।
एक दिवस धरने के बाद समाज के प्रधानमंत्री भारत सरकार, राष्ट्रपति नई दिल्ली, जनजाति कार्य मंत्री जनजातीय कार्यालय नई दिल्ली के नाम सौंपा गया अधिकारियों ज्ञापन कार्यालय में कल दिया जाएगा ज्ञापन।
दिल्ली में बैठे तेलंगा समाज के सदस्यों के नाम -नरेंद्र मरकाम, राजू पुजारी, मंगल रोटेल, आदि बाबू नागपुर, तिरुपति लिंगम, सुरेश वारगेम, बुच्छैया पसपुल, लिंगा मुमीर, तीरथ पसपुल, भूपेंद्र मज्जी, सितैया मज्जी, रमेश पेरमा, कन्हैया पेरमा, लखेश्वर मोलचेटला, संतोष मदेड, पसपुल लिंगु, चेन्दु नागपुर, राजेश पुजारी ,संतोष पुजारी, लक्ष्मैया बोडड , रामपाल बघेल, बोरगारम नाग, डाक्टर सुशील कोहाड, महेश कुडमुल, अनिल मंहकवार, नरेंद्र मरकाम रहे मौजूद।
एक नजर – छग के बस्तर संभाग के बीजापुर जिले में, बीजापुर ब्लॉक अन्तर्गतः-
बीजापुर – बैदरगुडा, कन्हैयागुडा, भट्टीपारा, बाण्डागुडा, चेरकंटी, चेरपाल, पदमूर, गंगालूर, जारगोया, रेड्डी, संतोषपुर, कोटेर, पालनार, कोतापाल, कमकानार, मेट्ट्टापाल, चौखनपाल, गोंगला, तोयनार, एरमनार, दुगोली, मुसालूर, ईटपाल, तुमानर, पेदाकोडेपाल। भैरमगढ़ ब्लॉक अन्तर्गत – भैरमगढ़, मिरतुर, पाण्डेमुर्गा, नेलेसनार, केतुलनार, छोटेतुमनार, कोण्डरोजी, बेंचरम, पाताकुटरू, जैगुर, नापरपारा। उसूर ब्लॉक- पुतकेल, आवापल्ली, बासागुड़ा, सारकोगुड़ा, बोरगुड़ा, लिंगागिरी, पीसेपारा, पाकेला।
इनके सरनेम – पानिक, रोटेल, मंचाल, मरकाम, बोल्ली, पेरमा, मज्जी, वारगेम, पसपुल, समतुल, (समरथ) कुडमुल, दोरा, नीलकंठ, गायता, चिंगलेम. गोंगला, गाली, नीमाचेट, मददेड़, मोलचेटला, पुल्ला, नेगी, कोटाम, सारके, (चालकी) इसेरला, पुजारी, मुमीर, नागूल, चापरला, भण्डारी, धुर्वा, लिंगम, नीलम, वेंडजा, कुम्हार, आलम, ईरपा, कोरसा, चेरपाल, बोडगोल्ला वड्डे, पीसे, (पीसो) संदा, मोडियम, नंदुल, एर्रागोल्ला, बेंडे, नदुल, सोयम, कोसूम, मिरतुर, नाग, सोड़ी, हेमला, गवतुल, गागरू, बघे ल. चेटला, रेड्डी, चेडदोरा, पुनेम, तेलम, पेतार, बेंडेल, पीसेल, पांडवल, जो कि राजस्व रिकार्ड में दर्ज है। ये लोग तेलुगू बोली-भाषा तेलुगू मिश्रित माड़िया बोली बोलते है। (Peculier dilect admixture called guttu the dilect of Gondi-)
जंतर-मंतर में ध्यान आकर्षित महत्वपूर्ण बिन्दु
1. जॉच समिति शीघ्र अतिशीघ्र गठित किया जाय। 2.1950 के पूर्व हमारी जनजाति का नाम एवं दर्जा (status) जो था उसे पूर्वतत (Restore) किया जाए। 3.1861-1956 तक मध्यप्रांत एवं बरार की राजधानी नागपुर थी जिसमें विदर्भ और बस्तर संभाग थे, विदर्भ 1956-60 तक मुंबई राज्य में सम्मिलित था बाद में 01 मई 1960 में संयुक्त महाराष्ट्र में लिया गया। तथा बस्तर संभाग 1956 के 01 नवम्बर 2000 तक मध्यप्रदेश में था आज छ०ग० राज्य का हिस्सा है, के बाद हमारी जनजाति स्वाधीनता के बाद पिछले 77 वर्षों से केन्द्र / राज्य शासन के चर्चा में अभी तक नहीं कुछ नही मिला अपितु पंचवर्षीय विशेष पैकेज नियोजन केन्द्र और राज्य शासन की ओर से घोषित करे अन्यथा विकल्प खोजे। शैक्षणिक, सामाजिक, आर्थिक, शासकीय, अशासकीय, नौकरियों में आरक्षण राजकीय विकास का समावेश करे। 4.जनजाति हेतु विशेष भर्ती अभियान शुरू कर भर्ती करे। 5. टास्क फोर्स स्थापित कर हमारे समूहों पर केन्द्र / राज्य शासन स्तर पर क्या कुछ कार्यवाही आज तक हुई है? 342 सूची में क्यों नहीं लिया गया? इसका फालो अप लेकर श्वेतपत्र जारी करें हमें अवगत करावें। 6. राज्य शासन के द्वारा केन्द्र शासन को प्रस्तावित करें माननीय राष्ट्रीय माननीय संसद अध्यक्ष माननीय, प्रधानमंत्री, माननीय, मुख्यमंत्री, रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इण्डिया, राष्ट्रीय जनजाति आयोग राज्य जनजाति आयोग इन्हे अवगत करावें। 7. भारतीय संविधान में राज्यों को विशेष अधिकार दिये गये है, मे जेनवेन केस समझें स्पेशल/एमरजेंसी आर्डिनेंस पास कर अध्यादेश निर्णय प्रकार्शित करें यह समय की माँग है। 8. झाडी तेलंगा/तेलगा समूह के बस्तर संभाग के आयुक्त/जिलाधीश/अनुविभागीय अधिकारी/तहसीलदार इस बाबत् राजस्व जाँच के आदेश दिये जावे। 9. तेलंगा, तेलगा, झाडी तेलंगा आदि रिकार्ड रूम से जगदलपुर दन्तेवाड़ा में इंग्लिश/ब्रिटीश/रियासती रिकार्ड रूम से जॉच की जाए। 10. तेलंगा और तेलगा यह जाति पिछडा वर्ग सूची से हटाई जाए कारण यह आदिम जंगली कृषि श्रमिक है आदिम का अर्थ प्रीमीटिव होता है, जंगली का अर्थ झाडी होता है। रियासती/जमीदारी शासनकाल में जमीनदार के मालिक जमीदार हुआ करते थे, उनके कृषि को श्रमिक झाडी तेलंगा होता था। देखें मध्यप्रान्त में सम्मिलित रियासतों में भूमि अधिकार आदेश और नियम 1949 समिति कि अल्टीमेटम- एक माह के भीतर यदि कार्यवाही नही होती है तो क्षेत्र में ‘असहकार आंदोलन’ तथा शांतिपुर्ण ढंग से आंदोलन/अनशन होगा।